Saturday, 31 March 2012

शनि मंत्र साधना - Shani Mantra Sadhna

शनिदेव का स्वरूप: : शनिदेव की शरीर कांति इन्द्रनीलमणि के समान है। वह हाथों में धनुष-बाण और त्रिशूल धारण किए रहते हैं और एक भुजा वरमुद्रा में है।

विशेष- श्वेत चावलों की वेदी के पश्चिम में शनिदेव की स्थापना करनी चाहिए। शनिदेव के अधिदेव यमराज माने गए हैं। शनैश्चर को खिचड़ी का नैवेद्य अर्पित करना चाहिए।

शनिदेव का मंत्र : ऊं नमो अर्हते भगवते श्रीमते मुनिसुव्रत तीर्थंकराय वरूण यक्ष बहुरूपिणी |
यक्षी सहिताय ऊं आं क्रों ह्रीं ह्र: शनि महाग्रह मम दुष्‍टग्रह,
रोग कष्‍ट निवारणं सर्व शान्तिं च कुरू कुरू हूं फट् || 23000 जाप्‍य ||
मध्‍यम यंत्र- ऊं ह्रीं क्रौं ह्र: श्रीं शनिग्रहारिष्‍ट निवारक श्री मुनिसुव्रतनाथ जिनेन्‍द्राय नम: शान्तिं कुरू कुरू स्‍वाहा || 23000 जाप्‍य ||

लघु मंत्र- ऊं ह्रीं णमो लोए सव्‍वसाहूणं || 10000 जाप्‍य ||

तान्त्रिक मंत्र - ऊं प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम: || 23000 जाप्‍य ||

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