Wednesday, 6 June 2012

3 दिव्य मंत्र, बढ़ाते हैं दांपत्य जीवन में प्यार

वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाने के सरल उपाय...

शादी के बाद कई बार यह देखने में आता है, कि शुरूआती कुछ समय तक तो पति-पत्नी में प्रेम बना रहता है, लेकिन कुछ समय बाद ही उनके बीच आपसी झगड़े बढ़ने लगते हैं। ऐसे में घर में अक्सर कलह की स्थितियां बनती हैं, और वैवाहिक जीवन लगभग खराब हो जाता है।

यदि आपके घर में या जीवन में इस तरह की स्थ‍ितियां बनती हैं, तो नीचे दिए गए मंत्र का प्रयोग कर आप इस समस्या से निजात पा सकते हैं। उपायों को आजमाएं, और अपने वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाएं -  

1 पति-पत्नी में अत्यंत कलह की स्थि‍ति में यह उपाय करें -

सूर्योदय से उठकर स्नान कर लें।
इसके बाद किसी भी शि‍व मंदिर में जाएं और शिवलिंग पर जल चढ़ाते हुए पूरी श्रद्धा के साथ नीच दिए गए मंत्र का जाप करें।

मंत्र है -

ओम् नम: संभवाय च मयो भवाय च नम:
शंकराय च मयस्कराय च नम: शिवाय च शिवतराय च।।

2 यदि पति-पत्नी के बीच अक्सर आपसी मतभेद की स्थि‍तियां बनती हों, तो-

सुबह उठकर स्नान के बाद किसी एकांत जगह आसन बिछा लें, अब उस आसन पर पूर्व दिशा की ओर मुंह करके बैठ जाएं,  सामने मां पार्वती की तस्वीर या प्रतिमा रखें,  श्रद्धा के साथ 21 बार नीचे लिखे मंत्र का जाप करें -    

अक्ष्यौ नौ मधुसंकाशे अनीकं नौ समंजनम्।
अंत: कृणुष्व मां ह्रदि मन इन्नौ सहासति।।

3 वैवाहिक सुख की प्राप्ति और अनबन के निवारण के लिए -

सुबह सूर्यादय के पूर्व उठकर स्नान करें,  मां दुर्गा की प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक जलाएं,  अगरबत्ती व फूल चढ़ाएं, इसके बाद नीचे लिखे मंत्र का 108 बार जाप करें।

मंत्र  
धां धीं धूं धूर्जटे: पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरू।।

पं‍डितों के अनुसार इस मंत्र द्वारा अतिशीघ्र परिणाम प्राप्त होते हैं और जीवन में सुख-शांति का वास होता है।

सभी मंत्रों का प्रयोग नियम अनुसार, विधि-विधान के साथ मन में पूरी श्रद्धा रखकर करें एवं मंत्रों का गलत उच्चारण नहीं करें।

इसके अलावा आप गौरीशंकर रूद्राक्ष भी धारण कर सकते हैं।  

पति पत्नी के बीच अनबन दूर करने और प्यार बढ़ाने के मंत्र

पति पत्नी का रिश्ता बहुत ही अटूट और बहुत ही नाज़ुक होता है  ये दुनिया का एक ऐसा रिलेशन होता है जहाँ सारे रिश्ते मिल जाते है चाहे  वह दोस्त के जैसा लड़ना हो या, एक माँ पापा की जैसे केयर, या फिर एक बच्चे जैसे जिद्द, पति पत्नी  दोनों एक दूसरे के लिए ये सारे भूमिका निभाते है. जहाँ इतना प्यार होता है वहाँ लड़ाई झगडे भी आम बात है पर ये पति पत्नी के  सूझ भुझ और समझदारी पर निर्भर करता है की वो कैसे उस समस्या का समाधान निकालते है. कई बार होता है की समस्याए सुलझ ही नहीं पाती है और काफी बढ़ जाती है जिसका परिणाम होता है तलाक जो शायद  कोई भी परिवार नहीं चाहता  है |

हम आपको कुछ ऐसे तरीके और मंत्र बताते है जिससे आपका रिश्ता  कभी खराब नही होगा :

  • सबसे पहले बात तो यह की  कभी भी आज की लड़ाई को कल पर ना छोड़े आज की लड़ाई को आज ही खतम करके सोये ताकि नए सुबह की शुरवात नए किरण से हो ना की कल की किट पिट से |
  • कभी भी एक दूसरे को कमिया ना गिनाते रहे, कमिया सबमें होती है पर महत्वपूर्ण बात ये है की आप उसे कैसे उस इंसान की खूबी बना कर काबुल करते है ।
  • जब  भी  मौका  मिले  हमेशा  एक  दूसरे  की अच्छाइयों  की तारीफ करे इससे आप दोनों  की नज़दीकियां  बढ़ेगी।
  • अगर आप लोगो में कलेश बहुत जयदा रहता है तो सूर्योदय से पहले इस्नान करके शिव जी के मदिर में जाये और वहाँ शिवलिंग पर जल चढ़ाये और निचे लिखे मंत्र का जाप करे

ॐ नमः समभवाय च मयो भवाय च नमः
शंकराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च । ।
  • पति पत्नी के बीच मतभेद को दूर करने का दूसरा तरीका है मंत्र जाप । अगर आप इस जप विधि को विधि विधान से करेंगे तो कभी अनबन नहीं होगी साथ ही आपके बीच प्रेम भी बढ़ेगा

अक्ष्यो नौ मधुसंकाशे अनीक नौ समंजनम् ।
अंतः कृणुष्व मां ह्रदि मन इन्नो सहासति । ।
इस जप को करने के लिए किसी एकांत जगह पर आसन बिछा ले और पूर्व दिशा की और मुँह करके बैठे और अपने सामने मां पार्वती की प्रतिमा या चित्र रखे और श्रद्धापूर्वक उनकी इस्तुति करते हुए मंत्र का जाप २१ बार जाप करे ।

Sunday, 20 May 2012

बुध मंत्र साधना - Budh Mantra Sadhna

बुध का स्वरूप:: पीले चन्दन का टीका लगाए बुध पीले रंग की माला और वस्त्र धारण करते हैं और सोने के रथ पर सवार रहते हैं। बुध की प्रतिमा का स्वरूप ऐसा ही होना चाहिए। 

विशेष- श्वेत चावलों की वेदी के पूर्वोत्तर कोण पर बुध देव की स्थापना करनी चाहिए। बुध के अधिदेव भगवान विष्णु हैं। बुध को क्षीरपष्टिक (दूध में पके हुए साठी के चावल) का नैवेद्य अर्पित करना चाहिए।

बुध ग्रह का मंत्र : ऊं नमो अर्हते भगवते श्रीमते मल्लि तीर्थंकराय कुबेरयक्ष |
अपराजिता यक्षी सहिताय ऊं आं क्रों ह्रीं ह्र: बुधमहाग्रह मम दुष्‍टग्रह, 
रोग कष्‍ट निवारणं सर्व शान्तिं च कुरू कुरू हूं फट् || 14000 जाप्‍य ||
मध्‍यम यंत्र - ऊं ह्रौं क्रौं आं श्रीं बुधग्रहारिष्‍ट निवारक श्री विमल अनन्‍तधर्म शान्ति कुन्‍थअरहनमिवर्धमान अष्‍टजिनेन्‍द्रेभ्‍यो नम: शान्तिं कुरू कुरू स्‍वाहा || 8000 जाप्‍य ||

लघु मंत्र- ऊं ह्रीं णमो उवज्‍झायाणां || 10000 जाप्‍य ||

तान्त्रिक मंत्र- ऊं ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम: || 9000 जाप्‍य ||

Friday, 20 April 2012

गुरु मंत्र साधना - Guru Mantra Sadhna

बृहस्पति का स्वरूप: : बृहस्पति देव की चार भुजाएं हैं, तीन भुजाओं में दण्ड, रुद्राक्ष की माला और कमण्डलु तथा चौथी भुजा वरमुद्रा में है। बृहस्पति की प्रतिमा पीले रंग की होनी चाहिए। 

विशेष- श्वेत चावलों की वेदी के उत्तर में बृहस्पति देव की स्थापना करनी चाहिए। बृहस्पति के अधिदेव भगवान ब्रह्मा माने जाते हैं। बृहस्पति को दही-भात का नैवेद्य अर्पित करना चाहिए।

बृहस्पति का मंत्र  ऊं नमो अर्हते भगवते श्रीमते वर्धमान तीर्थकराय मातंगयक्ष |
सिद्धायिनीयक्षी सहिताय ऊं आं क्रों ह्रीं ह्र: गुरु महाग्रह मम दुष्‍टग्रह,
रोग कष्‍ट निवारणं सर्व शान्तिं च कुरू कुरू फट् || 19000 जाप्‍य ||
मध्‍यम यंत्र- ऊं औं क्रौं ह्रीं श्रीं क्‍लीं ऐं गुरु अरिष्‍ट निवारक ऋषभ अजितसंभवअभिनंदन सुमति सुपार्श्‍वशीतल श्रेयांसनाथ अष्‍ट जिनेन्‍द्रेभ्‍यो नम: शान्तिं कुरू कुरू स्‍वाहा || 19000 जाप्‍य

लघु मंत्र - ऊं ह्रीं णमो उवज्‍झायाणं || 10000 जाप्‍य ||

तान्त्रिक मंत्र- ऊं ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम: || 19000 जाप्‍य ||

Saturday, 31 March 2012

मंत्र साधना के नियम एवं पालन

मंत्रों की शक्ति असीम है। यदि साधनाकाल में नियमों का पालन न किया जाए तो कभी-कभी बड़े घातक परिणाम सामने आ जाते हैं। प्रयोग करते समय तो विशेष सावधानी‍ बरतनी चाहिए। मंत्र उच्चारण की तनिक सी त्रुटि सारे करे-कराए पर पानी फेर सकत‍ी है। तथा गुरु के द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन साधक ने अवश्‍य करना चाहिए।

साधक को चाहिए कि वो प्रयोज्य वस्तुएँ जैसे- आसन, माला, वस्त्र, हवन सामग्री तथा अन्य नियमों जैसे-दीक्षा स्थान, समय और जप संख्या आदि का दृढ़तापूर्वक पालन करें, क्योंकि विपरीत आचरण करने से मंत्र और उसकी साधना निष्‍फल हो जाती है। जबकि विधिवत की गई साधना से इष्‍ट देवता की कृपा सुलभ रहती है। साधना काल में निम्न नियमों का पालन अनिवार्य है।

* जिसकी साधना की जा रही हो, उसके प्रति पूर्ण आस्था हो।
* मंत्र-साधना के प्रति दृढ़ इच्छा शक्ति।
* साधना-स्थल के प्रति दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ-साथ साधन का स्थान, सामाजिक और पारिवारिक संपर्क से अलग-अलग हो।
* उपवास प्रश्रय और दूध-फल आदि का सात्विक भोजन किया जाए तथा श्रृंगार-प्रसाधन और कर्म व विलासिता का त्याग आवश्यक है।
* साधना काल में भूमि शयन।
* वाणी का असंतुलन, कटु-भाषण, प्रलाप, मिथ्या वाचन आदि का त्याग करें और कोशिश मौन रहने की करें। निरंतर मंत्र जप अथवा इष्‍ट देवता का स्मरण-चिंतन आवश्‍यक है।

मंत्र साधना में प्राय: विघ्न-व्यवधान आ जाते हैं। निर्दोष रूप में कदाचित ही कोई साधक सफल हो पाता है, अन्यथा स्थान दोष, काल दोष, वस्तु दोष और विशेष कर उच्चारण दोष जैसे उपद्रव उत्पन्न होकर साधना को भ्रष्ट हो जाने पर जप तप और पूजा-पाठ निरर्थक होजाता है। इसके समाधान हेतु आचार्य ने काल, पात्र आदि के संबंध में अनेक प्रकार के सावधानीपरक निर्देश दिए हैं।

मंत्रों की जानकारी एवं निर्देश  
1. यदि शाबर मंत्रों को छोड़ दें तो मुख्यत: दो प्रकार के मंत्र है- वैदिक मंत्र और तांत्रिक मंत्र। जिस मंत्र का जप अथवा अनुष्‍ठान करना है, उसका अर्घ्य पहले से लेना चाहिए। तत्पश्चात मंत्र का जप और उसके अर्घ्य की भावना करनी चाहिए। ध्यान रहे, अर्घ्य बिना जप निरर्थक रहता है।

2. मंत्र के भेद क्रमश: तनि माने गए हैं। 1. वाचिक जप 2. मानस जप और 3. उपाशु जप।  

वाचिक जप- जप करने वाला ऊँचे-ऊँचे स्वर से स्पष्‍ट मंत्रों को उच्चारण करके बोलता है, तो वह वाचिक जप कहलाता है।
उपांशु जप- जप करने वालों की जिस जप में केवल जीभ हिलती है या बिल्कुल धीमी गति में जप किया जाता है जिसका श्रवण दूसरा नहीं कर पाता वह उपांशु जप कहलाता है।

मानस जप- यह सिद्धि का सबसे उच्च जप कहलाता है। जप करने वाला मंत्र एवं उसके शब्दों के अर्थ को एवं एक पद से दूसरे पद को मन ही मन चिंतन करता है वह मानस जप कहलाता है। इस जप में वाचक के दंत, होंठ कुछ भी नहीं हिलते है।
अभिचार कर्म के लिए वाचिक रीति से मंत्र को जपना चाहिए। शां‍‍‍ति एवं पुष्‍टि कर्म के लिए उपांशु और मोक्ष पाने के लिए मानस रीति से मंत्र जपना चाहिए।

3. मंत्र सिद्धि के लिए आवश्यक है कि मंत्र को गुप्त रखना चाहिए। मंत्र- साधक के बारे में यह बात किसी को पता न चले कि वो किस मंत्र का जप करता है या कर रहा है। यदि मंत्र के समय कोई पास में है तो मानसिक जप करना चाहिए।

4. कोई भी मन्त्र साधना 7 या 11 या 21 या 40 या 48 या 51 दिनो की होनी चाहिए

शनि मंत्र साधना - Shani Mantra Sadhna

शनिदेव का स्वरूप: : शनिदेव की शरीर कांति इन्द्रनीलमणि के समान है। वह हाथों में धनुष-बाण और त्रिशूल धारण किए रहते हैं और एक भुजा वरमुद्रा में है।

विशेष- श्वेत चावलों की वेदी के पश्चिम में शनिदेव की स्थापना करनी चाहिए। शनिदेव के अधिदेव यमराज माने गए हैं। शनैश्चर को खिचड़ी का नैवेद्य अर्पित करना चाहिए।

शनिदेव का मंत्र : ऊं नमो अर्हते भगवते श्रीमते मुनिसुव्रत तीर्थंकराय वरूण यक्ष बहुरूपिणी |
यक्षी सहिताय ऊं आं क्रों ह्रीं ह्र: शनि महाग्रह मम दुष्‍टग्रह,
रोग कष्‍ट निवारणं सर्व शान्तिं च कुरू कुरू हूं फट् || 23000 जाप्‍य ||
मध्‍यम यंत्र- ऊं ह्रीं क्रौं ह्र: श्रीं शनिग्रहारिष्‍ट निवारक श्री मुनिसुव्रतनाथ जिनेन्‍द्राय नम: शान्तिं कुरू कुरू स्‍वाहा || 23000 जाप्‍य ||

लघु मंत्र- ऊं ह्रीं णमो लोए सव्‍वसाहूणं || 10000 जाप्‍य ||

तान्त्रिक मंत्र - ऊं प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम: || 23000 जाप्‍य ||

Friday, 30 March 2012

राहु मंत्र साधना - Rahu Mantra Sadhna

राहु का स्वरूप: : राहु की चार भुजाओं में से तीन में तलवार, कवच, त्रिशूल हैं और चौथी भुजा वरमुद्रा में है। राहु की मूर्ति का स्वरूप ऐसा होना चाहिए।

विशेष- श्वेत चावलों की वेदी के पश्चिम-दक्षिण कोण पर राहु की स्थापना करनी चाहिए। काल को राहु का अधिदेव माना गया है। राहु को अजश्रृंगी नामक लता के फल का गूदा नैवेद्य के रूप में अर्पित करना चाहिए।

राहु ग्रह का मंत्र  ऊं नमो अर्हते भगवते श्रीमते नेमि तीर्थंकराय सर्वाण्‍हयक्ष कुष्‍मांडीयक्षी सहिताय |
ऊं आं क्रौं ह्रीं ह्र: राहुमहाग्रह मम दुष्‍टग्रह, रोग कष्‍ट निवारणं सर्व शान्तिं च कुरू कुरू हूं फट् || 18000 जाप्‍य ||
मध्‍यम मंत्र- ऊं ह्रीं क्‍लीं श्रीं हूं: राहुग्रहारिष्‍टनिवारक श्री नेमिनाथ जिनेन्‍द्राय नम: शान्तिं कुरू कुरू स्‍वाहा || 18000 जाप्‍य ||

लघु मंत्र- ऊं ह्रीं णमो लोए सव्‍वसाहुणं || 10000 जाप्‍य ||

तान्त्रिक मंत्र - ऊं भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम: || 18000 जाप्‍य ||

Wednesday, 28 March 2012

केतु मंत्र साधना - Ketu Mantra Sadhna

केतु का स्वरूप: : धूम्र वर्ण केतु की दो भुजाएं हैं जिनमें एक भुजा में गदा और दूसरी वरमुद्रा में है।

विशेष- श्वेत चावलों की वेदी के पश्चिमोत्तर कोण पर केतु की स्थापना करनी चाहिए। चित्रगुप्त को केतु का अधिदेव माना जाता है। केतु को विचित्र रंगवाले चावलों का का नैवेद्य अर्पित करना चाहिए।

केतु का मंत्र  ऊं नमो अर्हते भगवते श्रीमते पार्श्‍व तीर्थंकराय धरेन्‍द्रयक्ष पद्मावतीयक्षी सहिताय |
ऊं आं क्रों ह्रीं ह्र: केतुमहाग्रह मम दुष्‍टग्रह, रोग कष्‍टनिवारणं सर्व शान्तिं च कुरू कुरू हूं फट् || 7000 जाप्‍य ||
मध्‍यम मंत्र - ऊं ह्रीं क्‍लीं ऐं केतु अरिष्‍टनिवारक श्री मल्लिनाथ जिनेन्‍द्राय नम: शान्तिं कुरू कुरू स्‍वाहा || 7000 जाप्‍य ||

लघु मंत्र- ऊं ह्रीं णमो लोए सव्‍वसाहूणं || 10000 जाप्‍य ||

तान्त्रिक मंत्र- ऊं स्‍त्रां स्‍त्रीं स्‍त्रौं स: केतवे नम: || 17000 जाप्‍य ||

Friday, 23 March 2012

चन्द्र मंत्र साधना - Chandra Mantra Sadhna

चन्द्रमा का स्वरूप: 
चन्द्रमा गौर वर्ण, श्वेत वस्त्र और श्वेत अश्वयुक्त हैं तथा उनके आभूषण भी श्वेत वर्ण के हैं। चन्द्रमा की प्रतिमा इसी तरह की होनी चाहिए।

विशेष- श्वेत चावलों की वेदी के दक्षिण-पूर्व कोण पर चन्द्र देव की स्थापना करनी चाहिए। पार्वती जी को चन्द्रमा का अधिदेव माना जाता है। चन्द्रमा को घी और दूध से बने पदार्थों का नैवेद्य अर्पित करना चाहिए। 

चन्द्रमा का मंत्र : ऊं नमो अर्हते भगवते श्रीमते चंद्रप्रभु तीर्थंकराय विजय यक्ष |
ज्‍वालामालिनी यक्षी सहिताय ऊं आं क्रों ह्रीं ह्र: सोम महाग्रह |
मम दुष्‍टग्रह, रोग कष्‍ट निवारणं सर्व शान्तिं च कुरू कुरू हूं फट् || 11000 जाप्‍य ||
मध्‍यम यंत्र- ऊं ह्रीं क्रौं श्रीं क्‍लीं चंद्रग्रहारिष्‍ट-निवारक श्री चंद्रप्रभु-जिनेन्‍द्राय नम: शान्तिं कुरू कुरू स्‍वाहा || 11000 जाप्‍य ||

लघु मंत्र - ऊं ह्रीं णमो अरिहंताणं || 10000 जाप्‍य || 

तान्त्रिक मंत्र - ऊं श्रां श्रीं श्रौं स: चंद्रमसे नम: || 11000 जाप्‍य ||

मंगल मंत्र साधना -Mangal Mantra Sadhna

मंगल ग्रह का स्वरूप : चार भुजाधारी मंगल देव के तीन हाथों में खड्ग, ढाल, गदा तथा चौथा हाथ वरदमुद्रा में है, उनकी शरीर की कांति कनेर के पुष्प जैसी है। वह लाल रंग की पुष्पमाला और वस्त्र धारण करते हैं। मंगल की प्रतिमा का स्वरूप ऐसा ही होना चाहिए। 

विशेष- श्वेत चावलों की वेदी के दक्षिण में मंगल देव की स्थापना करनी चाहिए। भविष्यपुराण के अनुसार मंगल के अधिदेव स्कन्द हैं। मंगल को गोझिया(गुजिया) का नैवेद्य अर्पित करना चाहिए। 

मंगल देव का मंत्र: ऊं नमोअर्हते भगवते वासुपूज्‍य तीर्थंकराय षण्‍मुखयक्ष |
गांधरीयक्षी सहिताय ऊं आं क्रों ह्रीं ह्र: कुंज महाग्रह मम दुष्‍टग्रह,
रोग कष्‍ट निवारणं सर्व शान्तिं च कुरू कुरू हूं फट् || 11000 जाप्‍य ||
मध्‍यम यंत्र- ऊं आं क्रौं ह्रीं श्रीं क्‍लीं भौमारिष्‍ट निवारक श्री वासुपूज्‍य जिनेन्‍द्राय नम: शान्तिं कुरू कुरू स्‍वाहा || 10000 स्‍वाहा ||

लघु मंत्र- ऊं ह्रीं णमो सिद्धाणं || 10000 जाप्‍य ||

तान्त्रिक मंत्र- ऊं क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम: || 10000 जाप्‍य ||

Wednesday, 14 March 2012

राहु मंत्र साधना - Rahu Mantra Sadhna

राहु का स्वरूप: : राहु की चार भुजाओं में से तीन में तलवार, कवच, त्रिशूल हैं और चौथी भुजा वरमुद्रा में है। राहु की मूर्ति का स्वरूप ऐसा होना चाहिए।

विशेष- श्वेत चावलों की वेदी के पश्चिम-दक्षिण कोण पर राहु की स्थापना करनी चाहिए। काल को राहु का अधिदेव माना गया है। राहु को अजश्रृंगी नामक लता के फल का गूदा नैवेद्य के रूप में अर्पित करना चाहिए।

राहु ग्रह का मंत्र  ऊं नमो अर्हते भगवते श्रीमते नेमि तीर्थंकराय सर्वाण्‍हयक्ष कुष्‍मांडीयक्षी सहिताय |
ऊं आं क्रौं ह्रीं ह्र: राहुमहाग्रह मम दुष्‍टग्रह, रोग कष्‍ट निवारणं सर्व शान्तिं च कुरू कुरू हूं फट् || 18000 जाप्‍य ||
मध्‍यम मंत्र- ऊं ह्रीं क्‍लीं श्रीं हूं: राहुग्रहारिष्‍टनिवारक श्री नेमिनाथ जिनेन्‍द्राय नम: शान्तिं कुरू कुरू स्‍वाहा || 18000 जाप्‍य ||

लघु मंत्र- ऊं ह्रीं णमो लोए सव्‍वसाहुणं || 10000 जाप्‍य ||

तान्त्रिक मंत्र - ऊं भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम: || 18000 जाप्‍य ||

राहु मंत्र साधना - Rahu Mantra Sadhna

राहु का स्वरूप: : राहु की चार भुजाओं में से तीन में तलवार, कवच, त्रिशूल हैं और चौथी भुजा वरमुद्रा में है। राहु की मूर्ति का स्वरूप ऐसा होना चाहिए।

विशेष- श्वेत चावलों की वेदी के पश्चिम-दक्षिण कोण पर राहु की स्थापना करनी चाहिए। काल को राहु का अधिदेव माना गया है। राहु को अजश्रृंगी नामक लता के फल का गूदा नैवेद्य के रूप में अर्पित करना चाहिए।

राहु ग्रह का मंत्र  ऊं नमो अर्हते भगवते श्रीमते नेमि तीर्थंकराय सर्वाण्‍हयक्ष कुष्‍मांडीयक्षी सहिताय |
ऊं आं क्रौं ह्रीं ह्र: राहुमहाग्रह मम दुष्‍टग्रह, रोग कष्‍ट निवारणं सर्व शान्तिं च कुरू कुरू हूं फट् || 18000 जाप्‍य ||
मध्‍यम मंत्र- ऊं ह्रीं क्‍लीं श्रीं हूं: राहुग्रहारिष्‍टनिवारक श्री नेमिनाथ जिनेन्‍द्राय नम: शान्तिं कुरू कुरू स्‍वाहा || 18000 जाप्‍य ||

लघु मंत्र- ऊं ह्रीं णमो लोए सव्‍वसाहुणं || 10000 जाप्‍य ||

तान्त्रिक मंत्र - ऊं भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम: || 18000 जाप्‍य ||

राहु मंत्र साधना - Rahu Mantra Sadhna

राहु का स्वरूप: : राहु की चार भुजाओं में से तीन में तलवार, कवच, त्रिशूल हैं और चौथी भुजा वरमुद्रा में है। राहु की मूर्ति का स्वरूप ऐसा होना चाहिए।

विशेष- श्वेत चावलों की वेदी के पश्चिम-दक्षिण कोण पर राहु की स्थापना करनी चाहिए। काल को राहु का अधिदेव माना गया है। राहु को अजश्रृंगी नामक लता के फल का गूदा नैवेद्य के रूप में अर्पित करना चाहिए।

राहु ग्रह का मंत्र  ऊं नमो अर्हते भगवते श्रीमते नेमि तीर्थंकराय सर्वाण्‍हयक्ष कुष्‍मांडीयक्षी सहिताय |
ऊं आं क्रौं ह्रीं ह्र: राहुमहाग्रह मम दुष्‍टग्रह, रोग कष्‍ट निवारणं सर्व शान्तिं च कुरू कुरू हूं फट् || 18000 जाप्‍य ||
मध्‍यम मंत्र- ऊं ह्रीं क्‍लीं श्रीं हूं: राहुग्रहारिष्‍टनिवारक श्री नेमिनाथ जिनेन्‍द्राय नम: शान्तिं कुरू कुरू स्‍वाहा || 18000 जाप्‍य ||

लघु मंत्र- ऊं ह्रीं णमो लोए सव्‍वसाहुणं || 10000 जाप्‍य ||

तान्त्रिक मंत्र - ऊं भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम: || 18000 जाप्‍य ||

Friday, 9 March 2012

सूर्य मंत्र साधना -Surya Mantra Sadhna

सूर्यदेव का स्वरूप: सूर्यदेव की दो भूजाएं हैं। वह कमल के आसन पर विराजमान रहते हैं। उनके दोनों हाथों में कमल सुशोभित रहते हैं। उनकी कांति कमल के भीतरी भाग के जैसी है और वह सात घोड़ों के रथ पर आरूढ़ रहते हैं। सूर्यदेव की प्रतिमा का स्वरूप ऐसा ही होना चाहिए। 

विशेष बातें- वेदी के मध्य में श्वेत चावलों पर सूर्य देव की प्रतिमा की स्थापना करनी चाहिए। सूर्य के अधिदेव शिव माने गए हैं। सूर्य को गुड़ और चावल से बनी खीर का नैवेद्य अर्पित करना चाहिए।

सूर्यदेव का मंत्र : ऊं नमो भगवते श्रीमते पद्मप्रभु तीर्थंकराय कुसुम यक्ष मनोवेगा यक्षी सहिताय ऊं आं क्रों ह्रीं ह्र: ||
आदित्‍य - महाग्रह मम कुटुंबस्‍य सर्व दुष्‍टग्रह, रोग कष्‍ट निवारणं कुरू कुरू सर्व शान्तिं कुरू कुरू |
सर्व समृद्धं कुरू कुरू इष्‍ट संपदां कुरू कुरू अनिष्‍ट निवारणं कुरू कुरू |
धन धान्‍य समृद्धिं कुरू कुरू काम मांगल्‍योत्‍सवं कुरू कुरू हूं फट् || 7000 जाप्‍य ||

मध्‍यम मंत्र- ऊं ह्रीं क्‍लीं सूर्यग्रहारिष्‍टनिवारक श्री पद्मप्रभु-जिनेन्‍द्राय नम: शान्तिं कुरू कुरू स्‍वाहा || जाप्‍य 7000 ||

लघु मंत्र- ऊं ह्रीं णमो सिद्धाणं || 10000 जाप्‍य ||

तान्त्रिक मंत्र- ऊं ह्रां ह्रीं ह्रों स: सूर्याय नम: || 7000 जाप्‍य ||