Monday, 8 December 2014

श्री दुर्गा चालीसा - Durga Chalisa


माता दुर्गा शक्ति की देवी है। शक्ति की देवी की उपासना बल प्रदान करती है। देवी शारीरिक, आत्मिक और मानसिक बल प्रदान करती है। अतिरुद्र रूपा देवी की आराधना महान कष्ट की नाशक है। किंतु श्रद्धा और नियम मां दुर्गा को अतिप्रिय है। अनुशासन से युक्त होकर की गई आराधना दुर्गा मां को प्रसन्न करती है। श्री दुर्गा चालीसा पाठ वह माध्यम है। जिसके द्वारा हृदय की श्रद्धा को दुर्गा मां तक सरल शब्दों में पहुंचाया जा सकता है।

।।दोहा ।।

शरणागत रक्षा करे, भक्त रहे निशंक।
मै आया तेरी शरण में, मातु लीजिये अंक।।

।। चौपाई।।

नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥
निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूँ लोक फैली उजियारी॥
शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥
रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे॥1॥

तुम संसार शक्ति लै कीना। पालन हेतु अन्न धन दीना॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी। तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥2॥

रूप सरस्वती को तुम धारा। दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा। परगट भई फाड़कर खम्बा॥
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो। हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं। श्री नारायण अंग समाहीं॥3॥

क्षीरसिन्धु में करत विलासा। दयासिन्धु दीजै मन आसा॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात बखानी॥
मातंगी अरु धूमावति माता। भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी। छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥4॥

केहरि वाहन सोह भवानी। लांगुर वीर चलत अगवानी॥
कर में खप्पर खड्ग विराजै ।जाको देख काल डर भाजै॥
सोहै अस्त्र और त्रिशूला। जाते उठत शत्रु हिय शूला॥
नगरकोट में तुम्हीं विराजत। तिहुँलोक में डंका बाजत॥5॥

शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे। रक्तबीज शंखन संहारे॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी। जेहि अघ भार मही अकुलानी॥
रूप कराल कालिका धारा। सेन सहित तुम तिहि संहारा॥
परी गाढ़ सन्तन र जब जब। भई सहाय मातु तुम तब तब॥6॥

अमरपुरी अरु बासव लोका। तब महिमा सब रहें अशोका॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी। तुम्हें सदा पूजें नरनारी॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावें। दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई। जन्ममरण ताकौ छुटि जाई॥7॥

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥
शंकर आचारज तप कीनो। काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को। काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥
शक्ति रूप का मरम न पायो। शक्ति गई तब मन पछितायो॥8॥

शरणागत हुई कीर्ति बखानी। जय जय जय जगदम्ब भवानी॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा। दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो। तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥
आशा तृष्णा निपट सतावें। मोह मदादिक सब बिनशावें॥9॥

शत्रु नाश कीजै महारानी। सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥
करो कृपा हे मातु दयाला। ऋद्धिसिद्धि दै करहु निहाला॥
जब लगि जिऊँ दया फल पाऊँ । तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ ॥
श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै। सब सुख भोग परमपद पावै॥10॥

देवीदास शरण निज जानी। कहु कृपा जगदम्ब भवानी॥

Sunday, 7 December 2014

हनुमान चालीसा - Hanuman Chalisa

कलयुग में हनुमानजी की भक्ति सबसे सरल और जल्द ही फल प्रदान करने वाली मानी गई है। श्रीराम के अनन्य भक्त श्री हनुमान अपने भक्तों और धर्म के मार्ग पर चलने वाले लोगों की हर कदम मदद करते हैं। सीता माता के दिए वरदान के प्रभाव से वे अमर हैं और किसी ना किसी रूप में अपने भक्तों के साथ रहते हैं।हनुमानजी को मनाने के लिए सबसे सरल उपाय है हनुमान चालीसा का नित्य पाठ। हनुमानजी की यह स्तुति का सबसे सरल और सुरीली है। इसके पाठ से भक्त को असीम आनंद की प्राप्ति होती है। तुलसीदास द्वारा रचित हनुमान चालीसा बहुत प्रभावकारी है। इसकी सभी चौपाइयां मंत्र ही हैं। जिनके निरंतर जप से ये सिद्ध हो जाती है और पवनपुत्र हनुमानजी की कृपा प्राप्त हो जाती है।यदि आप मानसिक अशांति झेल रहे हैं, कार्य की अधिकता से मन अस्थिर बना हुआ है, घर-परिवार की कोई समस्यां सता रही है तो ऐसे में सभी ज्ञानी विद्वानों द्वारा हनुमान चालीसा के पाठ की सलाह दी जाती है। इसके पाठ से चमत्कारिक फल प्राप्त होता है, इसमें कोई शंका या संदेह नहीं है। यह बात लोगों ने साक्षात् अनुभव की होगी की हनुमान चालीसा के पाठ से मन को शांति और कई समस्याओं के हल स्वत: ही प्राप्त हो जाते हैं। साथ ही हनुमान चालीसा का पाठ करने के लिए कोई विशेष समय निर्धारित नहीं किया गया है। भक्त कभी भी शुद्ध मन से हनुमान चालीसा का पाठ कर सकता है।


हनुमान चालीसा और उसका अर्थ :=
श्री गुरु चरण सरोज रज,निज मन मुकुरु सुधारि। बरनऊँ रघुवर बिमल जसु,जो दायकु फल चारि।
श्री गुरु महाराज के चरण कमलों की धूलि से अपने मन रुपी दर्पण को पवित्र करके श्री रघुवीर के निर्मल यश का वर्णन करता हूँ,जो चारों फल धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष को देने वाला है।
बुद्धिहीन तनु जानिके,सुमिरो पवन-कुमार।बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं,हरहु कलेश विकार।

अर्थ - हे पवन कुमार*! मैं आपको सुमिरन करता हूँ। आप तो जानते ही हैं,कि मेरा शरीर और बुद्धि निर्बल है।मुझे शारीरिक बल,सदबुद्धि एवं ज्ञान दीजिए और मेरे दुःखों व दोषों का नाश कार दीजिए।


॥चौपाई॥
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर,जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥१॥
अर्थ - श्री हनुमान जी!आपकी जय हो।आपका ज्ञान और गुण अथाह है।हे कपीश्वर!आपकी जय हो!तीनों लोकों,स्वर्ग लोक,भूलोक और पाताल लोक में आपकी कीर्ति है।
राम दूत अतुलित बलधामा, अंजनी पुत्र पवन सुत नामा॥२॥
अर्थ - हे पवनसुत अंजनी नंदन!आपके समान दूसरा बलवान नही है।
महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी॥३॥
अर्थ - हे महावीर बजरंग बली!आप विशेष पराक्रम वाले है। आप खराब बुद्धि को दूर करते है,और अच्छी बुद्धि वालो के साथी,सहायक है।
कंचन बरन बिराज सुबेसा ,कानन कुण्डल कुंचित केसा॥४॥
अर्थ - आप सुनहले रंग,सुन्दर वस्त्रों,कानों में कुण्डल और घुंघराले बालों से सुशोभित हैं।
हाथ ब्रज और ध्वजा विराजे,काँधे मूँज जनेऊ साजै॥५॥

अर्थ - आपके हाथ मे बज्र और ध्वजा है और कन्धे पर मूंज के जनेऊ की शोभा है।
शंकर सुवन केसरी नंदन,तेज प्रताप महा जग वंदन॥६॥

अर्थ - हे शंकर के अवतार!हे केसरी नंदन आपके पराक्रम और महान यश की संसार भर मे वन्दना होती है।
विद्यावान गुणी अति चातुर,रान काज करिबे को आतुर॥७॥
अर्थ - आप प्रकान्ड विद्या निधान है,गुणवान और अत्यन्त कार्य कुशल होकर श्री राम काज करने के लिए आतुर रहते है।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया॥८॥
अर्थ - आप श्री राम चरित सुनने मे आनन्द रस लेते है।श्री राम,सीताऔर लखन आपके हृदय मे बसे रहते है।
सूक्ष्म रुप धरि सियहिं दिखावा,बिकट रुप धरि लंक जरावा॥९॥

अर्थ - आपने अपना बहुत छोटा रुप धारण करके सीता जी को दिखलाया और भयंकर रूप करके लंका को जलाया।
भीम रुप धरि असुर संहारे,रामचन्द्र के काज संवारे॥१०॥
अर्थ - आपने विकराल रुप धारण करके राक्षसों को मारा और श्री रामचन्द्र जी के उदेश्यों को सफल कराया।
लाय सजीवन लखन जियाये,श्री रघुवीर हरषि उर लाये॥११॥

अर्थ - आपने संजीवनी बुटी लाकर लक्ष्मण जी को जिलाया जिससे श्री रघुवीर ने हर्षित होकर आपको हृदय से लगा लिया।
रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई,तुम मम प्रिय भरत सम भाई॥१२॥
अर्थ - श्री रामचन्द्र ने आपकी बहुत प्रशंसा कीऔर कहा की तुम मेरे भरत जैसे प्यारे भाई हो।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं,अस कहि श्री पति कंठ लगावैं॥१३॥
अर्थ - श्री राम ने आपको यह कहकर हृदय से लगा लिया की तुम्हारा यश हजार मुख से सराहनीय है।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा, नारद,सारद सहित अहीसा॥१४॥
अर्थ - श्री सनक,श्री सनातन,श्री सनन्दन,श्री सनत्कुमार आदि मुनि ब्रह्मा आदि देवता नारद जी,सरस्वती जी,शेषनाग जी सब आपका गुण गान करते है।
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते,कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥१५॥
अर्थ - यमराज,कुबेर आदि सब दिशाओं के रक्षक,कवि विद्वान,पंडित या कोई भी आपके यश का पूर्णतः वर्णन नहीं कर सकते।
तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा,राम मिलाय राजपद दीन्हा॥१६॥
अर्थ - आपनें सुग्रीव जी को श्रीराम से मिलाकर उपकार किया ,जिसके कारण वे राजा बने।
तुम्हरो मंत्र विभीषण माना,लंकेस्वर भए सब जग जाना॥१७॥
अर्थ - आपके उपदेश का विभिषण जी ने पालन किया जिससे वे लंका के राजा बने,इसको सब संसार जानता है।
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू,लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥१८॥
अर्थ - जो सूर्य इतने योजन दूरी पर है की उस पर पहुँचने के लिए हजार युग लगे।दो हजार योजन की दूरी पर स्थित सूर्य को आपने एक मीठा फल समझकर निगल लिया।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहि,जलधि लांघि गये अचरज नाहीं॥१९॥
अर्थ - आपने श्री रामचन्द्र जी की अंगूठी मुँह मे रखकर समुद्र को लांघ लिया,इसमें कोई आश्चर्य नही है।
दुर्गम काज जगत के जेते,सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥२०॥
अर्थ - संसार मे जितने भी कठिन से कठिन काम हो,वो आपकी कृपा से सहज हो जाते है।
राम दुआरे तुम रखवारे,होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥२१॥
अर्थ - श्री रामचन्द्र जी के द्वार के आप रखवाले है,जिसमे आपकी आज्ञा बिना किसी को प्रवेश नही मिलता अर्थात आपकी प्रसन्नता के बिना राम कृपा दुर्लभ है।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना,तुम रक्षक काहू को डरना॥२२॥
अर्थ - जो भी आपकी शरण मे आते है,उस सभी को आन्नद प्राप्त होता है,और जब आप रक्षक है,तो फिर किसी का डर नही रहता।
आपन तेज सम्हारो आपै,तीनों लोक हाँक ते काँपै॥२३॥
अर्थ - आपके सिवाय आपके वेग को कोई नही रोक सकता,आपकी गर्जना से तीनों लोक काँप जाते है।
भूत पिशाच निकट नहिं आवै,महावीर जब नाम सुनावै॥२४॥

अर्थ - जहाँ महावीर हनुमान जी का नाम सुनाया जाता है,वहाँ भूत,पिशाच पास भी नही फटक सकते।
नासै रोग हरै सब पीरा,जपत निरंतर हनुमत बीरा॥२५॥

अर्थ - वीर हनुमान जी!आपका निरंतर जप करने से सब रोग चले जाते है,और सब पीड़ा मिट जाती है।
संकट तें हनुमान छुड़ावै,मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥२६॥

अर्थ - हे हनुमान जी! विचार करने मे,कर्म करने मे और बोलने मे,जिनका ध्यान आपमे रहता है,उनको सब संकटो से आप छुड़ाते है।
सब पर राम तपस्वी राजा,तिनके काज सकल तुम साजा॥२७॥
अर्थ - तपस्वी राजा श्री रामचन्द्र जी सबसे श्रेष्ठ है,उनके सब कार्यो को आपने सहज मे कर दिया।
और मनोरथ जो कोइ लावै,सोई अमित जीवन फल पावै॥२८॥

अर्थ - जिसपर आपकी कृपा हो,वह कोई भी अभिलाषा करे तो उसे ऐसा फल मिलता है जिसकी जीवन मे कोई सीमा नही होती।
चारों जुग परताप तुम्हारा,है परसिद्ध जगत उजियारा॥२९॥
अर्थ - चारो युगों सतयुग,त्रेता,द्वाप र तथा कलियुग मे आपका यश फैला हुआ है,जगत मे आपकी कीर्ति सर्वत्र प्रकाशमान है।
साधु सन्त के तुम रखवारे,असुर निकंदन राम दुलारे॥३०॥
अर्थ - हे श्री राम के दुलारे ! आप सज्जनों की रक्षा करते है और दुष्टों का नाश करते है।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता ,अस बर दीन जानकी माता॥३१॥
अर्थ - आपको माता श्री जानकी से ऐसा वरदान मिला हुआ है,जिससे आप किसी को भी आठों सिद्धियां और नौ निधियां दे सकते है।
राम रसायन तुम्हरे पासा,सदा रहो रघुपति के दासा॥३२॥
अर्थ - आप निरंतर श्री रघुनाथ जी की शरण मे रहते है,जिससे आपके पास बुढ़ापा और असाध्य रोगों के नाश के लिए राम नाम औषधि है।
तुम्हरे भजन राम को पावै,जनम जनम के दुख बिसरावै॥३३॥
अर्थ - आपका भजन करने सेर श्री राम जी प्राप्त होते है,और जन्म जन्मांतर के दुःख दूर होते है।
अन्त काल रघुबर पुर जाई,जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई॥३४॥

अर्थ - अंत समय श्री रघुनाथ जी के धाम को जाते है और यदि फिर भी जन्म लेंगे तो भक्ति करेंगे और श्री राम भक्त कहलायेंगे।
और देवता चित न धरई,हनुमत सेई सर्व सुख करई॥३५॥
अर्थ - हे हनुमान जी!आपकी सेवा करने से सब प्रकार के सुख मिलते है,फिर अन्य किसी देवता की आवश्यकता नही रहती।
संकट कटै मिटै सब पीरा,जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥३६॥
अर्थ - हे वीर हनुमान जी! जो आपका सुमिरन करता रहता है,उसके सब संकट कट जाते है और सब पीड़ा मिट जाती है।
जय जय जय हनुमान गोसाईं,कृपा करहु गुरु देव की नाई॥३७॥
अर्थ - हे स्वामी हनुमान जी!आपकी जय हो,जय हो,जय हो!आप मुझपर कृपालु श्री गुरु जी के समान कृपा कीजिए।
जो सत बार पाठ कर कोई,छुटहि बँदि महा सुख होई॥३८॥
अर्थ - जो कोई इस हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करेगा वह सब बन्धनों से छुट जायेगा और उसे परमानन्द मिलेगा।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा,होय सिद्धि साखी गौरीसा॥३९॥
अर्थ - भगवान शंकर ने यह हनुमान चालीसा लिखवाया,इसलिए वे साक्षी है,कि जो इसे पढ़ेगा उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी।
तुलसीदास सदा हरि चेरा,कीजै नाथ हृदय मँह डेरा॥४०॥
अर्थ - हे नाथ हनुमान जी! तुलसीदास सदा ही श्री राम का दास है।इसलिए आप उसके हृदय मे निवास कीजिए।
॥दोहा॥
पवन तनय संकट हरन,मंगल मूरति रुप। राम लखन सीता सहित,हृदय बसहु सुरभुप॥
अर्थ - हे संकट मोचन पवन कुमार! आप आनन्द मंगलो के स्वरुप है।हे देवराज! आप श्री राम,सीता जी और लक्ष्मण सहित मेरे हृदय मे निवास कीजिए।

Saturday, 6 December 2014

श्री शनि चालीसा - Shani Chalisa

श्री शनि चालीसा
।। चौपाई।।

जयति जयति शनिदेव दयाला । करत सदा भक्तन प्रतिपाला।।
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै । माथे रतन मुकुट छवि छाजै।।
परम विशाल मनोहर भाला । टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला।।
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके । हिये माल मुक्तन मणि दमके।।
कर में गदा त्रिशूल कुठारा । पल बिच करैं आरिहिं संहारा।।
पिंगल, कृष्णों, छाया, नन्दन । यम, कोणस्थ, रौद्र, दुख भंजन।।
सौरी, मन्द, शनि, दश नामा । भानु पुत्र पूजहिं सब कामा।।
जा पर प्रभु प्रसन्न है जाहीं । रंकहुं राव करैंक्षण माहीं।।
पर्वतहू तृण होई निहारत । तृण हू को पर्वत करि डारत।।
राज मिलत बन रामहिं दीन्हो । कैकेइहुं की मति हरि लीन्हों।।
बनहूं में मृग कपट दिखाई । मातु जानकी गई चतुराई।।
लखनहिं शक्ति विकल करि डारा । मचिगा दल में हाहाकारा।।
रावण की गति-मति बौराई । रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई।।
दियो कीट करि कंचन लंका । बजि बजरंग बीर की डंका।।
नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा । चित्र मयूर निगलि गै हारा।।
हार नौलाखा लाग्यो चोरी । हाथ पैर डरवायो तोरी।।
भारी दशा निकृष्ट दिखायो । तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो।।
विनय राग दीपक महं कीन्हों । तब प्रसन्न प्रभु है सुख दीन्हों।।
हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी । आपहुं भरे डोम घर पानी।।
तैसे नल परदशा सिरानी । भूंजी-मीन कूद गई पानी।।
श्री शंकरहि गहयो जब जाई । पार्वती को सती कराई।।
तनिक विलोकत ही करि रीसा । नभ उडि़ गयो गौरिसुत सीसा।।
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी । बची द्रौपदी होति उघारी।।
कौरव के भी गति मति मारयो । युद्घ महाभारत करि डारयो।।
रवि कहं मुख महं धरि तत्काला । लेकर कूदि परयो पाताला।।
शेष देव-लखि विनती लाई । रवि को मुख ते दियो छुड़ई।।
वाहन प्रभु के सात सुजाना । जग दिग्ज गर्दभ मृग स्वाना।।
जम्बुक सिंह आदि नखधारी । सो फल जज्योतिष कहत पुकारी।।
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं । हय ते सुख सम्पत्ति उपजावैं।।
गर्दभ हानि करै बहु काजा । गर्दभ सिद्घ कर राज समाजा।।
जम्बुक बुद्घि नष्ट कर डारै । मृग दे कष्ट प्रण संहारै।।
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी । चोरी आदि होय डर भारी।।
तैसहि चारि चरण यह नामा । स्वर्ण लौह चांजी अरु तामा।।
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं । धन जन सम्पत्ति नष्ट करावै।।
समता ताम्र रजत शुभकारी । स्वर्ण सर्व सुख मंगल कारी।।
जो यह शनि चरित्र नित गावै । कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै।।
अदभुत नाथ दिखावैं लीला । करैं शत्रु के नशि बलि ढीला।।
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई । विधिवत शनि ग्रह शांति कराई।।
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत । दीप दान दै बहु सुख पावत।।
कहत रामसुन्दर प्रभु दासा । शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा।।

।।दोहा।।

पाठ शनिश्चर देव को, की हों विमल तैयार ।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार।।

Monday, 17 November 2014

क्रोध का निवारण ओर शांति के कुछ उपाय

वास्तव में गुस्सा एक भयानक तूफ़ान जैसा है, जो जाने के बाद पीछे अपनी बर्बादी का निशान छो़ड जाता हैं। गुस्से में सबसे पहले दिमाग फिर जबान अपना आपा खोती है, वह वो सब कहती है, जो नहीं बिलकुल भी कहना चाहिए और रिश्तों में जबरदस्त क़डवाहट आ जाती है। और तब तो और भी मुश्किल होती है जब गुस्सा हमारे दिमाग में घर कर जाता है और हमारे अन्दर बदला लेने की सामने वाले को नुकसान पहुँचाने की भावना प्रबल हो जाती है ।

हम यहाँ पर आपको कुछ ऐसे उपाय बता रहे है जिससे हम यथासंभव अपने गुस्से पर काबू कर सकते है ।

* दो पके मीठे सेब बिना छीले प्रातः खाली पेट चबा-चबाकर पन्द्रह दिन लगातार खाने से गुस्सा शान्त होता है।  बर्तन फैंकने वाला, तोड़ फोड़ करने वाला और पत्नि और बच्चों पर हाथ उठाने वाला व्यक्ति भी अपने क्रोध से मुक्ति पा सकेगा। इसके सेवन से दिमाग की कमजोरी दूर होती है और स्मरण शक्ति भी बढ़ जाती है।

* गुस्सा आने पर दो तीन गिलास खूब ठंडा पानी धीरे धीरे घूँट घूँट लेकर पिएं । पानी हमारे शारीरिक तनाव को कम करके क्रोध शांत करने में मददगार होता है।

* गुस्सा बहुत आता हो तो धरती माता को रोज सुबह उठकर हाथ से पाँच बार छूकर प्रणाम करें और सबसे विशाल ह्रदय धरती माँ से अपने गुस्से पर काबू करने और सहनशील होने का वरदान मागें।

* कई बार स्थिति यह हो जाती है की गुस्सा हमे किसी परिस्थिवश अपने परिवार अथवा करीबी मित्रो के उपर आ जाता है ओर लाख कोशिशो के बाद भी गुस्सा शांत ना हो रहा हो ओर हम भूल नही पा रहे हो तो एक मिट्टी का वेस्टर्न उपाय अपनाइए जो काफ़ी प्रचलित है। किसी जगह से कुछ मिट्टी ले आए ओर उसकी एक गुड़िया बना ले ओर कुछ छोटी छोटी पिन ले आए, सुबह ओर शाम को धूप दीप के बाद ५ या ७ पिन गुड़िया को महादेव या अपने ईष्टदेव का स्मरण करके पूरी गुस्से की भावना से चूभोना है, यह क्रिया ११ या २१ दिन कर सकते है एवं २१ दिन की साधना के पश्चात इसे नदी मे प्रवाहित करदे। इसकी दिशा आप दक्षिण या पश्चिम ही रखे।

* यदि गुस्सा आने वाला हो तो 5-6 बार गहरी गहरी साँस लीजिए, कुछ पलों के लिए अपनी आँखे बंद करके ईश्वर का ध्यान करें उन्हें प्रणाम करें उनसे अपना कोई भी निवेदन करें। यह गुस्सा कम करने का सबसे बढ़िया तरीका है। इससे आप भड़कने से पहले ही निश्चित रूप से शांत हो जाएँगे।

* समान्यता गुस्सा सामने वाले से ज्यादा उम्मीदें पालने से आता है । इसलिए कभी भी सामने वाले से बहुत ज्यादा उम्मीदें ना पालें जिससे आपकी बात ना मानने पर भी आपका दिल बिलकुल ना दुखे। 

Saturday, 8 November 2014

पित्र दोष निवारण - Pitra Dosh Nivaran


ज्योतिष में पितृदोष का बहुत महत्व माना जाता है। प्राचीन ज्योतिष ग्रंथों में पितृदोष सबसे बड़ा दोष माना गया है। इससे पीड़ित व्यक्ति का जीवन अत्यंत कष्टमय हो जाता है। जिस जातक की कुंडली में यह दोष होता है उसे धन अभाव से लेकर मानसिक क्लेश तक का सामना करना पड़ता है। पितृदोष से पीड़ित जातक की उन्नति में बाधा रहती है। आमतौर पर पितृदोष के लिए खर्चीले उपाय बताए जाते हैं लेकिन यदि किसी जातक की कुंडली में पितृ दोष बन रहा है और वह महंगे उपाय करने में असमर्थ है तो भी परेशान होने की कोई बात नहीं। पितृदोष का प्रभाव कम करने के लिए ऐसे कई आसान, सस्ते व सरल उपाय भी हैं जिनसे इसका प्रभाव कम हो सकता है।

1. कुंडली में पितृ दोष बन रहा हो तब जातक को घर की दक्षिण दिशा की दीवार पर अपने स्वर्गीय परिजनों का फोटो लगाकर उस पर हार चढ़ाकर रोजाना उनकी पूजा स्तुति करना चाहिए। उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने से पितृदोष से मुक्ति मिलती है।
2. अपने स्वर्गीय परिजनों की निर्वाण तिथि पर जरूरतमंदों अथवा गुणी ब्राह्मणों को भोजन कराए। भोजन में मृतात्मा की कम से कम एक पसंद की वस्तु अवश्य बनाएं।
3. इसी दिन अगर हो सके तो अपनी सामर्थ्यानुसार गरीबों को वस्त्र और अन्न आदि दान करने से भी यह दोष मिटता है।
4. पीपल के वृक्ष पर दोपहर में जल, पुष्प, अक्षत, दूध, गंगाजल, काले तिल चढ़ाएं और स्वर्गीय परिजनों का स्मरण कर उनसे आशीर्वाद मांगें।
5. शाम के समय में दीप जलाएं और नाग स्तोत्र, महामृत्युंजय मंत्र या रुद्र सूक्त या पितृ स्तोत्र व नवग्रह स्तोत्र का पाठ करें। इससे भी पितृ दोष की शांति होती है।
6. सोमवार प्रात:काल में स्नान कर नंगे पैर शिव मंदिर में जाकर आक के 21 पुष्प, कच्ची लस्सी, बिल्वपत्र के साथ शिवजी की पूजा करें। 21 सोमवार करने से पितृदोष का प्रभाव कम होता है।
7. प्रतिदिन इष्ट देवता व कुल देवता की पूजा करने से भी पितृ दोष का शमन होता है।
8. कुंडली में पितृदोष होने से किसी गरीब कन्या का विवाह या उसकी बीमारी में सहायता करने पर भी लाभ मिलता है। 
9. ब्राह्मणों को प्रतीकात्मक गोदान, गर्मी में पानी पिलाने के लिए कुंए खुदवाएं या राहगीरों को शीतल जल पिलाने से भी पितृदोष से छुटकारा मिलता है।
10. पवित्र पीपल तथा बरगद के पेड़ लगाएं। विष्णु भगवान के मंत्र जाप, श्रीमद्‍भागवत गीता का पाठ करने से भी पित्तरों को शांति मिलती है और दोष में कमी आती है।
11. पितरों के नाम पर गरीब विद्यार्थियों की मदद करने तथा दिवंगत परिजनों के नाम से अस्पताल, मंदिर, विद्यालय, धर्मशाला आदि का निर्माण करवाने से भी अत्यंत लाभ मिलता है।

पित्र दोष निवारण मन्त्र 
मन्त्र 1 -- ॐ सर्व पितृ देवताभ्यो नमः ।
मन्त्र २--  ॐ प्रथम पितृ नारायणाय नमः ।।

Saturday, 2 August 2014

मंत्र जप व मंत्र सिद्ध के कुछ ओर नियम !!


मंत्र जप का मूल भाव होता है- मनन। जिस देव का मंत्र है उस देव के मनन के लिए सही तरीके धर्मग्रंथों में बताए है। शास्त्रों के मुताबिक मंत्रों का जप पूरी श्रद्धा और आस्था से करना चाहिए। साथ ही, एकाग्रता और मन का संयम मंत्रों के जप के लिए बहुत जरुरी है। माना जाता है कि इनके बिना मंत्रों की शक्ति कम हो जाती है और कामना पूर्ति या लक्ष्य प्राप्ति में उनका प्रभाव नहीं होता है। 

यहां मंत्र जप से संबंधित 13 जरूरी नियम और तरीके बताए जा रहे हैं, जो गुरु मंत्र हो या किसी भी देव मंत्र और उससे मनचाहे कार्य सिद्ध करने के लिए बहुत जरूरी माने गए हैं- 

१-मंत्रों का पूरा लाभ पाने के लिए जप के दौरान सही मुद्रा या आसन में बैठना भी बहुत जरूरी है। इसके लिए पद्मासन मंत्र जप के लिए श्रेष्ठ होता है। इसके बाद वीरासन और सिद्धासन या वज्रासन को प्रभावी माना जाता है। 
२-मंत्र जप के लिए सही वक्त भी बहुत जरूरी है। इसके लिए ब्रह्ममूर्हुत यानी तकरीबन 4 से 5 बजे या सूर्योदय से पहले का समय श्रेष्ठ माना जाता है। प्रदोष काल यानी दिन का ढलना और रात्रि के आगमन का समय भी मंत्र जप के लिए उचित माना गया है। 
३-अगर यह वक्त भी साध न पाएं तो सोने से पहले का समय भी चुना जा सकता है।
४-मंत्र जप प्रतिदिन नियत समय पर ही करें। 
५-एक बार मंत्र जप शुरु करने के बाद बार-बार स्थान न बदलें। एक स्थान नियत कर लें। 
६ -मंत्र जप में तुलसी, रुद्राक्ष, चंदन या स्फटिक की 108 दानों की माला का उपयोग करें। यह प्रभावकारी मानी गई है। 
७ -किसी विशेष जप के संकल्प लेने के बाद निरंतर उसी मंत्र का जप करना चाहिए। 
८-मंत्र जप के लिए कच्ची जमीन, लकड़ी की चौकी, सूती या चटाई अथवा चटाई के आसन पर बैठना श्रेष्ठ है। सिंथेटिक आसन पर बैठकर मंत्र जप से बचें।
९- माला का घुमाने के लिए अंगूठे और बीच की उंगली का उपयोग करें।माला घुमाते समय माला के सुमेरू यानी सिर को पार नहीं करना चाहिए, जबकि माला पूरी होने पर फिर से सिर से आरंभ करना चाहिए।
१०-मंत्र जप के लिए एकांत और शांत स्थान चुनें। जैसे- कोई मंदिर या घर का देवालय। 
११-मंत्र जप दिन में करें तो अपना मुंह पूर्व या उत्तर दिशा में रखें और अगर रात्रि में कर रहे हैं तो मुंह उत्तर दिशा में रखें। 
१२ - बंगलामुखी या काली या त्याज्य साधनाए दक्षिण दिशा की ओर करके करनी  चाहिए
१३-मंत्रों का उच्चारण करते समय यथासंभव माला दूसरों को न दिखाएं। अपने सिर को भी कपड़े से ढंकना चाहिए। 

विशेष:=======
कुछ विशेष कामनों की पूर्ति के लिए विशेष मालाओं से जप करने का भी विधान है। जैसे धन प्राप्ति की इच्छा से मंत्र जप करने के लिए मूंगे की माला, पुत्र पाने की कामना से जप करने पर पुत्रजीव के मनकों की माला और किसी भी तरह की कामना पूर्ति के लिए जप करने पर स्फटिक की माला का उपयोग करें। 

Monday, 5 May 2014

शादी के बाद अगर पति-पत्नी को किसी भी प्रकार प्रकार की परेशानी हो रही तो उस को दूर करने के उपाय !!

विवाह के बाद कुछ दंपत्तियों को कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इन परेशानियों के कारण वैवाहिक जीवन से सुख और समृद्धि गायब हो जाती है। ऐसी परिस्थिति में पति-पत्नी को आपसी समझदारी से काम लेना चाहिए, साथ ही ज्योतिष के अनुसार बताए गए कुछ उपाय भी करना चाहिए।यदि पति-पत्नी के बीच की परेशानियां कुंडली में स्थित ग्रह दोषों के कारण उत्पन्न हो रही हैं तो उनका उपचार ज्योतिषीय उपायों से ही किया जा सकता है। पति-पत्नी अपनी-अपनी कुंडली के लग्न अनुसार उपाय करेंगे तो वैवाहिक जीवन की कई समस्याएं स्वत: ही समाप्त हो जाएंगी। कुंडली के प्रथम भाव को लग्न भाव कहा जाता है। यह भाव जिस राशि का होता है, कुंडली उसी राशि के लग्न की मानी जाती है।

कुंडली के लग्न अनुसार किए जाने वाले उपाय, 

कुंडली में मेष लग्न
मेष लग्न के लोगों के लिए दांपत्य सुख का कारक शुक्र ग्रह होता है। ये लोग वैवाहिक सुख पाने के लिए नियमित रूप से गाय व पक्षियों को चावल खिलाएं। स्त्रियां मां पार्वती को समर्पित सिंदूर अपनी मांग में लगाएं।
कुंडली में वृष लग्न
वृष लग्न के लोगों के लिए दांपत्य सुख के सप्तम भाव का कारक मंगल ग्रह होता है। वृष लग्न के व्यक्ति लाल वस्त्र में सौंफ बांधकर अपने शयनकक्ष में रखें और इसे समय-समय पर बदलते रहें।
कुंडली में मिथुन लग्न
जिन लोगों की कुंडली मिथुन लग्न की है, उनकी कुंडली में दांपत्य सुख का कारक गुरु ग्रह होता है। इस लग्न के लोगों को गुरुवार का व्रत रखना चाहिए और इस दिन एक समय भोजन करना चाहिए। साथ ही, शिवलिंग पर चने की दाल अर्पित करें।
कुंडली में कर्क लग्न
कर्क लग्न की कुंडली में वैवाहिक जीवन के भाव का कारक शनि ग्रह होता है। अधिकांश मामलों में इस लग्न के लोगों का दांपत्य जीवन बहुत सुखी नहीं कहा जा सकता। शनिवार व मंगलवार की शाम पति-पत्नी हनुमानजी के दर्शन करने जाएं। साथ ही, हनुमान चालीसा का पाठ करें।
कुंडली में सिंह लग्न
जिन लोगों की कुंडली सिंह लग्न की है, उनकी कुंडली में वैवाहिक सुख का कारक शनि होता है। ये लोग शनिपुष्य नक्षत्र में नाव की कील से बना छल्ला मध्यमा उंगली में धारण करें।
कुंडली में कन्या लग्न
कन्या लग्न की कुंडली में दांपत्य सुख का कारक ग्रह बृहस्पति होता है। इस लग्न के लोगों को भगवान लक्ष्मीनारायण की आराधना करनी चाहिए। साथ ही, हर गुरुवार को केले के पौधे में जल अर्पित करें।
कुंडली में तुला लग्न
तुला लग्न की कुंडली में दांपत्य सुख का कारक ग्रह मंगल होता है। इस लग्न के लोगों को मंगलवार का व्रत रखना चाहिए। दिन में एक समय भोजन करें और भोजन में मीठा व्यंजन अवश्य शामिल करें। साथ ही, शिवलिंग पर लाल पुष्प अर्पित करें।
कुंडली में वृश्चिक लग्न
वृश्चिक लग्न की कुंडली में दांपत्य सुख का कारक ग्रह शुक्र है। अत: शुक्र को प्रसन्न करने के लिए किसी ऐसे स्थान पर जाएं, जहां मछलियां हों और वहां मछलियों को मिश्रीयुक्त उबले चावल खिलाएं।
कुंडली में धनु लग्न
धनु लग्न के लोगों के लिए दांपत्य सुख का कारक बुध ग्रह है। इन लोगों को भगवान गणपति की आराधना करनी चाहिए। हर बुधवार गणेशजी को दूर्वा अर्पित करें।
कुंडली में मकर लग्न
मकर लग्न की कुंडली में दांपत्य सुख का कारक चंद्रमा होता है। अत: इन लोगों को गौरीशंकर रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। साथ ही, चांदी का बना चंद्रमा यंत्र गंगा जल से पवित्र करके पूजा घर में रखें। हर पूर्णिमा पर गंगा जल से इस यंत्र को स्नान कराएं और नियमित रूप से पूजन करें।
कुंडली में कुंभ लग्न
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली कुंभ लग्न की है तो उसमें वैवाहिक सुख का कारक सूर्य ग्रह है। कारक ग्रह को प्रसन्न करने के लिए प्रतिदिन सूर्य को तांबे के लोटे से जल अर्पित करें।
कुंडली में मीन लग्न
जिन लोगों की कुंडली मीन लग्न की है, उनकी कुंडली में दांपत्य सुख का कारक ग्रह बुध होता है। इन लोगों को हर बुधवार भगवान गणेश की पूजा करनी चाहिए। पूजन के बाद किसी गाय को हरी घास भी खिलाएं।